मात्र ‘मां’ शब्द से ही ममता,त्याग और करूणा की एक शुभ्र-धवल प्रतिमूर्ति आंखों में छा जाती है। यह शब्द आदिकाल से लेकर वर्तमान युग तक अपनी संपूर्ण गरिमा और उज्ज्वलता के साथ मौजूद है। अभी 10 मई को ‘मदर्स डे’ मनाया गया। अपने देश में ‘मदर्स डे’ मनाना, उसे त्योहारी और उपहारी रूप देना सचमुच शर्मनाक है, क्योंकि मां का कोई ‘डे’ नहीं होता। वह हर पल,हर दिन मां ही रहती है और प्रेम,स्नेह,करूणा और ममता का ज्योतिकलश छलकाती रहती है।
मीडिया ने बजारीकरण की मांग पर ‘मदर्स डे’ को प्रचारित किया और बाजार में उछाला,जिससे बाजार की चकाचौंध में उत्पादक अपने सामान को बेंच सकें। आगे मीडिया ख़बर पर।
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