बाजार के तर्क के आगे सबकुछ नाकाम हो जाता है। लोग यदि पढेंगे ही नहीं, देखेंगे ही नहीं कैसे जीएगा अच्छा कंटेंट. अच्छे कंटेंट को बढ़ाने के लिए समाज के जो जिम्मेदार लोग हैं उन्हें कीमत चुकानी पड़ेगी. मुफ्त में अच्छा कंटेंट नहीं मिल सकता. आपको मुफ्त में मीडिया चाहिए तो सस्ता ही मिलेगा. इस समाज को सस्ते मीडिया की आदत पड़ गयी है. दुनिया में भारत से सस्ता मीडिया कहीं नहीं मिलता है. विदेशों में 50 - 50 रुपये तक के अखबार मिलते हैं. यहाँ तक कि पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश में अखबार कई-कई गुना यहाँ से महंगा मिलता है. ऐसा होने की वजह से ही भारतीय मीडिया विज्ञापन देने वालों के ऊपर इतना निर्भर हो गया है कि हमारे पास कुछ अच्छा करने की कोई गुंजाइश ही नहीं बचती है। आगे पढने के यहाँ क्लिक करें । क्लिक करें ।
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