लगता है सन् 2009 का साल भविष्य में आने वाले संकट की ओर संकेत कर रहा है। एक तरफ तो गर्मी का पारा लगातार बढ़ रहा है तो दूसरी ओर जल संकट का दायरा धीरे-धीरे बढ़ते हुए पूरे देश को अपने गिरफ्त में ले रहा है। हालत इतने गंभीर हैं कि सर्वोच्च न्यायलय को जल संकट के मुद्वे पर केन्द्र सरकार के खिलाफ़ बहुत ही तल्ख टिप्पणी करनी पड़ी, जोकि किसी भी आत्मस्वाभिमानी सरकार के लिए शर्म की बात हो सकती है।
पर हमारी सरकार तो नाम की लोकतांत्रिक और लोक कल्याणकारी है। इसे तो अपने स्वार्थों की रोटी सेंकने से ही फुरसत नहीं है। अगर एक लोकतांत्रिक सरकार जनता को जीवन की बुनियादी जरुरतों को मुहैया करवाने में असमर्थ है तो ऐसे में एक तानाशाह सरकार और लोकतांत्रिक सरकार के बीच क्या अंतर है ? आगे मीडिया ख़बर.कॉम पर।
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