भारी दिक्कत है कि यदि संपादक ए जोहान के लेख की समीक्षा करते हुए या उसका संदर्भ लेते हुए लिखा है तो वे कम से कम इस बात के लिये सीधे जिम्मेदार नहीं है और रही बात किसी समदाय विशेष की भावनाएं भड़काने वाले आलेख की तो मुस्लिम समुदाय खुद आपस में निर्धारित कर ले कि ब्लागिंग भी करने देना है या नहीं क्योंकि आप यदि कुछ दिल से लिखें भले ही आप हिंदू हों या मुस्लिम कहीं न कहीं आप किसी से असहमत हो ही जाते हैं क्योंकि इतने तो पंथ,संप्रदाय,मत हैं इस देश में... बहत्तर तो मुस्लिम संप्रदाय ही हैं जो खुद आपस में ही सहमत नहीं हैं एक दूसरे से फिर क्या संपादक के खिलाफ़ जाना कि उसे गिरफ़्तार कर लिया जाए? बोलने लिखने की आजादी पर हमें सामुदायिकता से ऊपर उठ कर पुनर्विचार करना होगा यदि ये आजादी राष्ट्र के उत्थान के लिये है तो.....
भारी दिक्कत है कि यदि संपादक ए जोहान के लेख की समीक्षा करते हुए या उसका संदर्भ लेते हुए लिखा है तो वे कम से कम इस बात के लिये सीधे जिम्मेदार नहीं है और रही बात किसी समदाय विशेष की भावनाएं भड़काने वाले आलेख की तो मुस्लिम समुदाय खुद आपस में निर्धारित कर ले कि ब्लागिंग भी करने देना है या नहीं क्योंकि आप यदि कुछ दिल से लिखें भले ही आप हिंदू हों या मुस्लिम कहीं न कहीं आप किसी से असहमत हो ही जाते हैं क्योंकि इतने तो पंथ,संप्रदाय,मत हैं इस देश में... बहत्तर तो मुस्लिम संप्रदाय ही हैं जो खुद आपस में ही सहमत नहीं हैं एक दूसरे से फिर क्या संपादक के खिलाफ़ जाना कि उसे गिरफ़्तार कर लिया जाए? बोलने लिखने की आजादी पर हमें सामुदायिकता से ऊपर उठ कर पुनर्विचार करना होगा यदि ये आजादी राष्ट्र के उत्थान के लिये है तो.....
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