न्यूज चैनलों का भाषा प्रयोग: पत्रकारिता में जिस तरह कन्टेंट को ही किंग माना जाता है। ठीक उसी तरह टीवी में विजुअल को कभी भाषा की दरकार होती नहीं है। लेकिन जब दौर चौबीस घंटे और सातों दिन न्यूज चैनल चलने का हो तो सबसे बड़ा सवाल यही होता है कि आखिर भाषा हो कैसी? क्योंकि भाषा अगर तकनीक के पीछे चली तो फिर सरोकार खत्म होता दिखेगा और अगर भाषा तकनीक से इतनी आगे निकल गयी कि उसके सरोकार तकनीक को ही खारिज करते दिखे तो फिर खबरें किसी अखबार या साहित्य के लपेटे में आते दिखेंगे।
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