अन्ना ने किया दिल्ली का दर्प दमन: देश के तमाम बुद्धिजीवियों ने अन्ना हजारे के आंदोलन की अपने-अपने तरीके से आलोचना प्रारंभ कर दी है। वे जो सवाल उठा रहे हैं वे भटकाव भरे तो हैं ही, साथ ही उससे चीजें सुलझने के बजाए उलझती हैं। किंतु हमें एक निहत्थे देहाती आदमी की इस बात के लिए तारीफ करनी चाहिए कि उसने दिल्ली में आकर केंद्रीय सत्ता के आतंक, चमकीले प्रलोभनों और कुटिल वकीलों व हावर्ड से पढ़कर लौटे मंत्रियों को जनशक्ति के आगे घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। आंदोलन में एक बेहद भावात्मक अपील होने के बावजूद देश में घटी इस घटना को एक ऐतिहासिक समय कहा जा सकता है।
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