टेलीविजन और क्राइम रिपोर्टिंग - समीक्षा: "नब्बे के दशक में मीडिया का स्वरूप बहुत तेजी से बदला. यह वह दौर था जब भारतीय दर्शक दूरदर्शन के फ्रेम से बाहर आकर सैटेलाइट चैनलों की चमक में खोने लगा था. यहीं से बाजार उसे देखने लगा. समाचार की भाषा, मानक, स्वरूप, सरोकार और उसका चयन सब कुछ बदलने लगे. साल 2000 आते-आते अखबार के सेंट्रल डेस्क से लेकर टीवी न्यूजरूम तक सब बाजार की भाषा बोलने लगे. फरमान जारी होने लगे कि 'अगर कुछ बिकता है तो वह है सिनेमा, क्रिकेट और क्राइम. इसी पर फोकस करो.'
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