मतदाता के नाम मनमोहन का ख़त, लाठी चली नहीं, बदन “लाल” हो गये ?: "मेरे प्यारे मतदाताओ,
भ्रष्टाचार भगाने और काले-धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने की मांग बाबा रामदेव, अन्ना हजारे कर रहे हैं । मुसीबत और फजीहत सरकार की हो रही है । आप खुद सोचो, “बिचारी-सरकार” क्या कर सकती है? सिर्फ एक दिन में । उस हालत में, जब भ्रष्टाचार सरकार से लेकर संतरी तक के खून में फैल चुका हो । बुढ़ापे की थकान से बेखबर, पहले अन्ना हजारे जंतर-मंतर पर जा जमे । अब मैदान में बाबा ने “रामलीला” शुरु कर दी । एक आफत हो तो निपटें । एक के बाद दूसरी आफत खड़ी है। बताओ भला कोई तुक है? सरकार चलाऊं या बाबा की रामलीला देखूं और अन्ना के भजन सुनूं?
जबाब के इंतजार में,
तुम्हारा,
मनमोहन सिंह
मतदाता का जबाब
परम पूज्यनीय श्रीमान मनमोहन सिंह जी,
बिल्कुल सही । आपकी परेशानी से मैं आहत हूं। समझ रहा हूं आपकी टीस को । भले ही ये चिट्ठी आप रहे लिख रहे हों । मनमोहन जी इस चिट्ठी को लिखने वाली कलम आपकी हो सकती है । लेकिन जिन उंगलियों के बीच फंसी है, वे आपकी कतई नहीं हो सकती हैं । उंगलियां तो आपकी “गॉड-मदर” (सोनिया जी) की ही हैं। सोचने वाली बात है, कि आप “कुर्सी” की खातिर देश को दांव पर लगाने में शर्म नहीं खा रहे हैं । बाबा या अन्ना भ्रष्टाचार और काले धन पर जुबान खोलने की जुर्रत करें, तो उन्हें सड़क पर बोलने की भी इजाजत नहीं । आपके विश्वासपात्रों ने अन्ना को समझा-बुझाकर जंतर-मंतर पर पानी पिलवाकर उठवा लिया । या यूं कहें कि जूस पिलवाकर अनशन तुड़वा दिया ।
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