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Sunday, May 1, 2011

ज्ञानवाणी के भ्रष्टाचार की कहानी, जनसत्ता के पन्नों पर

ज्ञानवाणी के भ्रष्टाचार की कहानी, जनसत्ता के पन्नों पर: "ज्ञानवाणी में क्यों छाया है अँधेरा ?


नयी दिल्ली, 30 अप्रैल। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) और उसकी एफएम गोल्ड सेवा ‘ज्ञानवाणी’ देश और दुनिया में ज्ञान की रोशनी पहुंचाने का दावा करते हैं, लेकिन उनके ही कर्मचारियों का भविष्य अंधकारमय है। नियुक्ति, विस्तार और स्थायी करने से लेकर वित्तीय भुगतान में मनमानी झेल रहे कर्मचारियों का धीरज टूटने लगा है। ज्ञानवाणी में 2003 से बतौर उदघोषिका काम कर रहीं अस्थायी कर्मचारी नईम अख्तर को अचानक परिसर से बाहर के फरमान के बाद मामले ने तूल पकड़ लिया है। सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत कई अर्जियां लगीं और मामला मानव संसाधन मंत्रालय तक पहुंचाया गया। ज्ञानवाणी के अधिकारी करीब तीन हफ्ते के प्रयास के बावजूद ‘जनसत्ता’ को अपना पक्ष बताने में आनाकानी करते रहे।

नईम अख्तर के हौसले से उत्साहित दूसरे कर्मचारी भी अब सामने आने लगे हैं। सात साल से ज्यादा समय तक बतौर उदघोषिका काम कर रही नईम को 27 जनवरी, 2011 को ईएमपीसी (इलेक्ट्रॉनिक मीडिया प्रोडक्शन सेंटर) में प्रवेश पर रोक लगाने से पहले ही कुछ अधिकारी उन्हें जबानी ही काली सूची में बताने लगे थे। बाद में ईएमपीसी के स्वागत कक्ष के आगे नईम की तस्वीर और स्टेशन मैनेजर के हाथ से लिखा उनका नाम तख्ती पर लगाकर सुरक्षा कर्मियों को आदेश दिया गया कि उन्हें परिसर में न आने दिया जाए।

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