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Friday, January 29, 2010

बाजार की चुनौतियों से बेजार हिन्दी पत्रकारिता

आज भूमंडलीकरण के दौर में हिन्दी पत्रकारिता की चुनौतियां न सिर्फ बढ़ गई हैं वरन उनके संदर्भ भी बदल गए हैं। पत्रकारिता के सामाजिक उत्तरदायित्व जैसी बातों पर सवालिया निशान हैं तो उसकी नैसर्गिक सैद्धांतिकता भी कठघरे में है। वैश्वीकरण और नई प्रौद्योगिकी के घालमेल से एक ऐसा वातावरण बना है जिससे कई सवाल पैदा हुए हैं। इनके वाजिब व ठोस उत्तरों की तलाश कई स्तरों पर जारी है। वैश्वीकरण व बाजारवाद की इन चुनौतियों ने हिन्दी पत्रकारिता को कैसे और कितना प्रभावित किया है इसका अध्ययन किया जाना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
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