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Sunday, April 12, 2009
महीने का ब्लॉग - चोखेरबाली
धूल जब तक पाँवों के नीचे है, स्तुत्य है, जब उड़ने लगे, आँधी बन जाए, आँख में गिर जाए तो बेचैन करती है। आँख की उस किरकिरी को निकाल बाहर करना चाहता है समाज। स्त्री उसकी आँखों को निरंतर खटकती है जब वह अपनी ख्वाहिशों को अभिव्यक्त करती है ; जब - जब वह अपनी ज़िन्दगी अपने मुताबिक जीना चाह्ती है, जब - जब वह लीक से हटती है, वह जब अपनी अस्मिता की खोज करना चाहती है, वह जब - जब तय मानकों को तोड़ती है अपनी कथनी, लेखनी या व्यवहार में; फिर चाहे वह वास्तविक जगत में हो या आभासी जगत मे। हिन्दी की वर्चुअल स्पेस में .... आगे मीडिया ख़बर पर। लिंक : http://mediakhabar.com/topicdetails.aspx?mid=65&tid=903
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