मंदी के दौर में जब छंटनी की गाज गिरी तब भी पत्रकार संगठनों की कहीं से कोई आवाज नहीं आई। पत्रकारों पर जब-जब किसी तरह की गाज गिरी है तो अधिकतर संगठन चुप रहे है। वे ये कह कर मामला नहीं टाल सकते हैं कि उनके पास शिकायत नहीं पहुंचती। ऐसे मामलों में संगठन की स्वयं पहल होनी चाहिए थी, जो नहीं दिखती। यह समय है विचार करने का। पत्रकार संगठन का कोई औचित्य भी है या महज दिखावे के लिए है। आखिर किसके लिए हो रही है पत्रकारिता। यदि जनता को जगाना है तो जनता का साथ ने इस मौके पर साथ क्यों नहीं दिया।
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