फासीवाद के बढ़ते कदम और न्याय की अवधारणा: "पिछले दिनों एक के बाद एक आए न्यायालयों के फैसलों ने मानवाधिकार आंदोलन के सामने चुनौती खडी कर दी है कि जब लोकतंत्र में न्याय पाने के एक मात्र संस्थान न्यायालय भी सत्ता के दबाव में निर्णय दे रहों तो, नागरिकों के मानवाधिकार को कैसे सुरक्षित रखा जाए। वरिष्ठ मानवाधिकार नेता और पीयूसीएल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनायक सेन को जिस तरह बिना ठोस सुबूत के रायपुर की एक अदालत ने उम्र कैद की सजा सुनाई या फिर पिछले साल पांच फरवरी 2010 को उत्तर प्रदेश की पीयूसीएल की संगठन मंत्री सीमा आजाद को माओवाद के नाम पर गिरफ्तार किया गया, उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आम लोगों को आतंकवादी या नक्सलवादी बताकर जेलों में सड़ा देना हमारे तंत्र के लिए किताना आसान हो गया है। हकीम तारिक और खालिद की फर्जी गिरफ्तारी पर सवाल उठने के बाद यूपी सरकार ने आरडी निमेश जांच आयोग बैठाया था और जिसे 6 महीने में रिपोर्ट देनी थी। आज दो साल से ज्यादा वक्त गुजर जाने के बाद भी उसने रिपोर्ट नहीं दी।
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