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Monday, January 23, 2012

जेल डायरी की वो आवाज़ जो खामोश हो गयी

जेल डायरी की वो आवाज़ जो खामोश हो गयी: माफ करना सचिन- तुम्हें चंबल का पानी नहीं पीने दिया...!

हां, सही बात है। मैं माफी मांग रहा हूं। खुले दिल-ओ-दिमाग से। अपने छोटे भाई समान सचिन विजय सिंह से। माफी इसलिए, क्योंकि मुझे लग रहा है, कि जाने-अनजाने मुझसे गलती हो गयी है। गलती ये कि सचिन तुमने 29-30 दिसंबर 2011 को आधी रात के वक्त चंबल नदी के ऊपर से गुजरते वक्त गुजारिश की थी। "सर मुझे चंबल का पानी पीना है।" क्योंकि मैंने बचपन से ही बहुत करीब से देखा है, रात के अंधेरे में चंबल के ऊंचे-नीचे, ऊबड़-खाबड़ किनारों को । चंबल नदी के गहरे पानी, चंबल नदी के लंबे-चौड़े दिल दहला देने वाले फाट (एक किनारे से दूसरे किनारे की चौड़ाई) और ऊंचे संकरे पुल को। चंबल में मौजूद घड़ियालों की पानी में उठा-पटक को। यही सब सोचकर अपने अनुभव के चलते मैं

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