सिनेमा और जिंदगी के असली आदमी थे देव आनंद: यूं तो पूरी जिंदगी खबरें उनको और वे खबरों को बुनते रहे। दोनों एक दूसरे में से बहुत अच्छे को चुनते रहे। फिर, इसी चुने हुए में से अपनी जिंदगी का ताना बाना बुनते रहे। और यही सब करते करते दुनिया को वे खुद के महत्वपूर्ण होने का अहसास भी कराते रहे। देव आनंद हमेशा बहुत महत्वपूर्ण बने रहे। वैसे वे महत्वहीन तो कभी नहीं थे। लेकिन मौत ने उनको एक बार फिर बहुत महत्वपूर्ण बना दिया है। वे जिंदगी भर, जिंदगी के सामने, जिंदगी से भी बड़े सवाल खड़े करते रहे। और जीते जीते तो कर ही रहे थे, जाते जाते भी जिंदगी को यह सवाल दे गए कि कि आखिर 88 साल की ऊम्र तक जीवन के आखरी पड़ाव पर भी कोई इंसान इतना सक्रिय कैसे रह सकता है।
- Sent using Google Toolbar
No comments:
Post a Comment