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Tuesday, October 11, 2011

गरीबी और मजाक

गरीबी और मजाक: आज़ादी के इतने वर्षो बाद भी गरीबी और मजाक एक दूसरे का पर्याय बने हुए है अगर ऐसा मान लिया जाय तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी ! कम से कम वर्तमान सरकार के रूख से तो ऐसे ही लगता है ! पहले गलती करना फिर तथ्यों के साथ खिलवाड़ कर तथा उसे तोड़-मरोड़ कर पेश करना और जब समाज के हर तबके में थू - थू होने लगे तो लीपापोती कर समस्या के प्रति गभीर होने का दावा कर जनता को गुमराह करने का दु:साहस करना, यह वर्तमान सरकार की फितरत बन गयी है ! मामले चाहे भ्रष्टाचार का हो अथवा योजना आयोग का जिसने अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर गरीबी रेखा का निर्धारण करने की नाकाम कोशिश की जो कि वर्तमान सरकार के गले हड्डी की फांस बन गयी ! योजना आयोग की यह दलील कि शहरी इलाके में 32 रुपये और ग्रामीण इलाके में 26 रुपये खर्च करने वाला व्यक्ति गरीब नहीं है , गले नहीं उतरती परन्तु यह काला सच जरूर साबित हो गया कि जो लोग ए.सी की हवादार बंद कमरे योजनाये बनाते है उनका वास्तविकता से कोई सरोकार ठीक उसी प्रकार नहीं है जैसे कि जब फ़्रांस में एक समय भुखमरी आई और लोग भूखे मरने लगे तो वहां की महारानी "मेरी एंटोयनेट" ने कहा कि अगर ब्रेड नहीं है तो ये लोग केक क्यों नहीं खाते ?

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