दलितों का हो अपना मीडिया: दलितों की कोई नयी मांग नहीं है कि उनका अपना मीडिया हो। हिन्दुवादी मीडिया में दलितों का अपना कोई व्यापक मीडिया नहीं है और न ही हिन्दुवादी मीडिया की तरह व्यवसायिकता और व्यापकता के साथ भारतीय मीडिया पर काबिज है। कहने के लिए तो सैकड़ों दलित पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं, जो दलितों द्वारा संचालित हो रही है। पत्र और पत्रिकाओं के मालिक संपादक, सभी दलित हैं। लेकिन आज दलित मीडिया राष्ट्रीय पटल पर स्थापित होने की छटपटाहट में है। यह छटपटाहट हाल-फिलहाल की नहीं है।
दलितों के ऊपर उत्पीड़न, शोषण और उनकी खबरों को हिन्दुवादी मीडिया द्वारा अपने तरीके से परोसे जाने को लेकर दलितों के बीच प्रतिरोध है। शुरू से ही भारतीय हिन्दू मीडिया दलितों की खबरों को अपने तरीके से संजोती परोसती और दिखाती रही है। हमेशा से दलित-पिछड़े हिन्दुवादी मीडिया के बीच उपेक्षित रहे हैं। कुछ खबरों को दिखा देने पर यह कतई नहीं माना जा सकता कि हिन्दुवादी मीडिया के दिलों दिमाग पर दलितों को लेकर कुछ जज्बा है। अगर खबरें आ भी जाती है तो
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