फेसबुक की हदें - सरहदें: न्यू मीडिया के एक मजबूत औजार के तौर पर फेसबुक की संभावनाओं को लेकर हम इतने उत्साहित और सक्रिय रहे हैं कि हमें इस बात का अंदाजा ही नहीं रहा कि अन्तर्जाल की दुनिया में जिसे हम अब तक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मानवाधिकार का सबसे तटस्थ मंच मानते आए हैं,देखते ही देखते उसके भीतर भी लोकतंत्र के स्याह प्रदेश बनने शुरु हो गए हैं। इन प्रदेशों की व्याख्या अगर सामाजिक-सांस्कृतिक और संवैधानिक स्तर पर की जाए तो ये न केवल गलत साबित होते हैं बल्कि आगे चलकर वे स्वयं न्यू मीडिया की मूल भावना के खिलाफ खड़े नजर आते हैं।
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