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Tuesday, August 30, 2011

गांधी-जेपी को नहीं देखा,लेकिन मैंने अन्ना को देखा है

गांधी-जेपी को नहीं देखा,लेकिन मैंने अन्ना को देखा है: मैंने गांधी को नहीं देखा और न ही जेपी को देखा। ये बात दिल्ली के रामलीला मैदान में मैंने एक बार नहीं सैकड़ों बार सुनी। गांधी और जेपी ऐसे शख्स थे जो पूरी उम्र दूसरों के लिए जिए और हमारे आज के नेता सिर्फ अपने लिए जीते हैं। मासूम मुंह से इन बातों को सुनने के बाद मेरे दिल और दिमाग में छाया कोहरा पूरी तरह से छंट गया कि आर्थिक सुधार के इस युग में जब कि नई पीढ़ी को मैक्ड़ोनाल्ड की औलाद कहा जाता है, क्यों अन्ना हजारे को सुनने और देखने के लिए कड़कड़ाती धूप और झमाझम बारिश में चले आ रहे हैं। मैं पूरे दस दिन तक बारह से पंद्रह घंटे तक रामलीला मैदान पर रहा और ढेरों लोगों से मिला। लोगों में यकीन था, एक मामूली दिखने वाले इंसान में।

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