अण्णा को नए सिरे से आत्ममंथन की ज़रूरत: "अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक घटनाक्रम में बीते हुए समय के दौरान दुनिया के कुछ खास मुल्कों में काफी उथल-पुथल रही. यह जानते हुए भी कि अमेरिका सख्त आर्थिक बोहरान से गुज़र रहा है और अभी उसे आगे भी गुज़रना होगा,, नाटो की सेना का कुछ मुल्कों में हस्तक्षेप अभी भी जारी है. भारत के अंदरूनी मामलों में अपने बयान का दखल देकर यह जता दिया है कि उसकी चौधराहट में फर्क नहीं आया है. इस बयान को गंभीरता से लिया जाना चाहिए क्योंकि अण्णा हजारे का आन्दोलन भ्रष्टाचार-विरोध की बैसाखी पर विपक्ष की लंगड़ी राजनीति के शतरंज की एक ऐसी चाल है जो मंदिर-मस्जिद विवाद के बाद अब चली गयी है और प्रतिपक्ष को लगता है कि इस बार ताज-तख़्त दूर नहीं है. ऐसा हो भी सकता है. योग-गुरू स्वामी रामदेव के आन्दोलन के माध्यम से देश ने कुछ समय पहले देखा भी था. यदि समझदार लोगों ने स्थिति को काबू में न कर लिया होता तो परिणाम भयानक होते जिसकी कल्पना करना आसान नहीं है. एक बार फिर चुनौतियाँ सामने हैं.
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