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Sunday, August 7, 2011

वर्तमान स्त्री : पूज्या या भोग्या

वर्तमान स्त्री : पूज्या या भोग्या: "अहं केतुरहं मूर्धाहमुग्रा विवाचानी । ममेदनु क्रतुपतिरू सेहनाया उपाचरेत !! ( ऋग्वेद )

( ऋग्वेद की ऋषिका -शची पोलोमी कहती है 'मैं ध्वजारूप (गृह स्वामिनी ),तीब्र बुद्धि वाली एवं प्रत्येक विषय पर परामर्श देने में समर्थ हूँ । मेरे कार्यों का मेरे पतिदेव सदा समर्थन करते हैं ! ' )

संक्रमण काल के इस दौर में तथाकथित प्रसिद्धि पाने की होड़, प्रतिस्पर्धा और आधुनिकता के नाम पर बदलाव के दहलीज पर खड़े हम स्त्री के उस जाज्वल्यमान आभा की प्रतीक्षा कर रहे है जो सनातन से ही भारतीय मनीषियों के चिंतन का विषय रहा है ! भारतीय मनीषियों ने सदैव से ही स्त्री-पुरुष को न केवल एक दूसरे का पूरक माना अपितु मनु स्मृति में स्त्री को पूजनीय कहकर समाज में प्रतिष्ठित किया गया !

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: !

यत्रेतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया: !!

( जहां महिलाओं को सम्मान मिलता है वहां समृद्धि का राज्य होता है. जहां महिलाऑ का अपमान होता है, वहां की सब योजनाएं/ कार्य विफल हो जाते हैं )

.विश्व की इस अद्वितीय भारतीय संस्कृति में ही हम स्त्री को पूजनीय कह सकते है तभी तो पुरुष उनकी ही बदौलत आज भी महिमा मंडित हो रहा है ! भारतीय दर्शन में सृष्टि का मूल कारण अखंड मातृसत्ता अदिति भी नारी है और वेद माता गायत्री है ! नारी की महानता का वर्णन करते हुये ”महर्षि गर्ग” कहते हैं कि :-

यद् गृहे रमते नारी लक्ष्‍मीस्‍तद् गृहवासिनी।

देवता: कोटिशो वत्‍स! न त्‍यजन्ति गृहं हितत्।।

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