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Monday, June 6, 2011

आज पत्रकारिता के समक्ष तोप मुक़ाबिल है

आज पत्रकारिता के समक्ष तोप मुक़ाबिल है: "इस घड़ी बाबा रामदेव के प्रयासों की वस्तुपरक एवं निष्पक्ष आलोचकीय बहस-मुबाहिसे की आवश्यकता है। यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि बाबा रामदेव को कई लोग कई तरह से विज्ञापित-आरोपित कर रहे हैं। कोई कह रहा है-संघ के हैं रामदेव, तो कोई उन्हें महाठग कह अपनी तबीयत दुरुस्त कर रहा है। कई तो उन्हें गाँधी के गणवेष में जनता के सामने परोसने के लिए विकल हैं। बदले हुए इस घटनाक्रम में मुद्दे से पलायन कर चुकी सरकार और स्वयं बाबा रामदेव एक-दूसरे के ख़िलाफ जुबानी तलवार भाँज रहे हैं। 4 जून को अचानक बदले घटनाक्रम को केन्द्र सरकार बाबा रामदेव द्वारा भीतरी राजनीतिक स्तर पर किए गए समझौते से साफ मुकर जाने को जिम्मेदार ठहरा रही है।

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