झारखंड में चैनल बना अय्याशी का अड्डा,चिरकुटों के हाथ में चौथा स्तंभ: "झारखंड में पत्रकारिता की साख काफी गिर चुकी है, महज एक दशक में यहां मीडिया ने जिस तेजी से उत्थान किया उसी तेजी से इसका पतन भी हुआ. प्रिंट मीडिया की स्थिति तो थोड़ी ठीक भी है . अनुभवी लोगों की देखरेख में अखबार निकल रहा है. लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में जो कुछ चल रहा है वो पत्रकारिता में आने वाले नस्ल के लिए एक बुरा संदेश है. क्योंकि झारखंड का इलेक्ट्रॉनिक मीडिया फर्जी पत्रकारों के हाथ की कठपुतली बन चुका है. यह वो पत्रकार हैं जो कल तक निजी टीवी चैनलों की आईडी लिए एक अदद बाईट के लिए दर-दर भटकते फिरते थे.
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