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Tuesday, May 3, 2011

पत्रकारिता की सीढ़ी चढ़कर उपेन्द्र राय पीआरगिरी के शिखर पर

"2G स्पेक्ट्रम घोटाला मामले में नीरा राडिया से हुई बातचीत के टेप इंटरनेट पर लगातार तैरते रहने से एक के बाद एक मीडिया दिग्गज लपेटे में आते रहे हैं। लेकिन अब तक इन टेपों में खास बात रही है कि इनमें से कोई भी पत्रकार हिन्दी मीडिया का नहीं रहा। इससे उपरी तौर पर ये मैसेज गया कि हिन्दी के मीडियाकर्मी अंग्रेजी मीडियाकर्मियों के मुकाबले कहीं ज्यादा पाक-साफ हैं। वो छोटे-मोटे समझौते तो करते रहते हैं लेकिन इस तरह देश को हिला देनेवाले करनामे नहीं करते। तब भाषाई स्तर पर ये निष्कर्ष निकाला गया कि आखिर हिन्दी तो है अपनी भाषा,इस देश की भाषा। कितना भी कुछ हो जाए,इस भाषा से जुड़े मीडियाकर्मी देश को इस तरह से बेच खाने का काम नहीं करेंगे। कुछ मीडियाकर्मियों ने इसे ईमानदारी के तौर पर प्रोजेक्ट किया और आशुतोष(IBN7) जैसे पत्रकार ने तो यहां तक घोषणा कर दी कि उन्हें सब पता होता है कि मीडिया के भीतर कुछ पत्रकार जो करते हैं वो दरअसल दल्लागिरी कहते हैं,अंग्रेजी में इसे भले ही लॉबिइंग कहा जाता हो। इस काम को करनेवाले दल्ले होते हैं। आशुतोष को ये जुमला इतना हिट समझ आया कि पटना गांधी मैदान में चल रहे पुस्तक मेले में इसे दोबारा दोहराया और जमकर तालियां बटोरी। यूट्यूब पर डाली गयी वीडियो को देखकर मैं मन मसोसकर रह गया कि उनमें से किसी ने ये सवाल क्यों नहीं किया कि अगर आपको पता है कि मीडिया में कुछ लोग दल्लागिरी करते हैं तो अब तक ऐसे कितने दल्लों पर स्टोरी चलायी है या फिर अपने सबसे प्रिय अखबार हिन्दुस्तान में उनके बारे में लिखा है। 2G स्पेक्ट्रम मामले में मीडिया की गर्दन बुरी तरह फंस जाने की स्थिति हिन्दी मीडिया जहां पूरी तरह खामोश है,वहीं आशुतोष लीड ले रहे हैं और एक तरह से कहिए तो हिन्दी मीडिया की ईमानदारी के झंडे गाड़ रहे हैं।लेकिन

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