दिशाहीन होती उर्दू पत्रकारिता: "भारतीय मीडिया में हिन्दी व अंग्रेजी की तरह उर्दू समाचार पत्रों का हस्तक्षेप नहीं दिखता है। वह तेवर नहीं दिखता जो हिन्दी या अंगे्रजी के पत्रों में दिखता है। आधुनिक मीडिया से कंधा मिला कर चलने में अभी भी यह लड़खड़ा रहा है। यों तो देश के चर्चित उर्दू अखबरों में आठ राज्यों से छप रहा ‘रोजनामा’ हैदराबाद से ‘सियासत’ और ‘मुंसिफ’, मुंबई का ‘इंकलाब’, दिल्ली से ‘हिन्दुस्तान एक्सप्रैस ’ व ‘मिलाप’, कनाटर्क से ‘दावत’ और पटना से ‘कौमी तन्जीम’ सहित अन्य उर्दू पत्र इस कोशिश में लगे हैं कि उर्दू पत्रकारिता को एक मुकाम दिया जाए। लेकिन बाजार और अन्य समस्याओं के जकड़न से यह निकल नहीं पा रहा है।
उर्दू पत्रकारों की स्थिति बद से बदतर, महिला पत्रकार नहीं के बराबर
देखा जाये तो उर्दू पत्रकारों की स्थिति बद से बदतर है तो महिला पत्रकार नहीं के बराबर हैं। यह इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि बिहार से प्रकाशित एक दर्जन से ज्यादा उर्दू अखबरों में एक भी महिला श्रमजीवी पत्रकार नहीं है।
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