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Saturday, April 16, 2011

हफ्तावसूली और ख़बरों की सुपारी, खबरों के बाजार में ‘खबरों की खबर’

हफ्तावसूली और ख़बरों की सुपारी, खबरों के बाजार में ‘खबरों की खबर’: "खबरों का एक बाजार है और उस बाज़ार के कई खिलाड़ी हैं. यहाँ भी कारोबार होता है, कुछ ईमानदारी से और कुछ बेईमानी से. खबरों के इस बाज़ार में ख़बरें बेचीं जाती है और खरीदी भी. इस बाज़ार के अपने कायदे - कानून हैं या फिर कोई कायदा – कानून नहीं. अंतिम सत्य पैसा है जिससे बाज़ार चलता है. बाज़ार के नियम और खबरों की दिशा तय होती है.

बिहार में चुनाव होते हैं तो पूरे देश की मीडिया संस्थानों के पटना ब्यूरो खुल जाते हैं. मीडिया संस्थानों के आला अधिकारियों का पटना आना – जाना बढ़ जाता है. नेताओं से नजदीकियां और मुलाकातें बढ़ने लगती है. चुनाव खत्म होते ही फिर सब बोरिया – बिस्तर बाँध गायब हो जाते हैं. क्या पटना में अचानक ब्यूरो खोलने वाले संस्थान महज खबरों की कवरेज की नियत से आये थे. बिलकुल नहीं, वे उस फंड में अपनी हिस्सेदारी की तलाश में आये थे जो चुनाव के लिए अलग – अलग नेताओं और पार्टियों ने खर्च करने के लिए रखी थी. ऐसे हालात में जहाँ खबरों को बाज़ार में एक प्रोडक्ट की तरह मोल – भाव के लिए खड़ा कर दिया जाता हो , सच्ची खबरों की उम्मीद करना अपने आप को बहलाने से ज्यादा कुछ नहीं होगा.

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