विदेशी शब्दों से हिन्दी समृद्ध नहीं विलुप्त हो रही है
कई लोग कहते हैं कि हिन्दी विदेशी शब्दों से समृद्ध होती है. तो अंग्रेजी और उर्दू भी हिन्दी और संस्कृत शब्दों से समृद्ध होनी चाहिए. क्या उर्दू और अंग्रेजी को समृद्ध होने की आवश्यकता नहीं ? ऐसे में प्रश्न उठता है कि उर्दू और अंगेजी में संस्कृत और हिंदी के उतने ही शब्द क्यों नहीं होते जितने हिंदी में उर्दू और अंग्रेजी के शब्द होते हैं?
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