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Sunday, February 14, 2010

टीआरपी की टिटहरी

टीआरपी के खेल में लिप्त महारथियों की दलीलों को पढ़ने के बाद कभी कभार ये शक होने लगता है कि क्या हम अब भी मानसिक रुप से स्वतंत्र सोची बन पाएं है या फिर अभी तक अमेरिकी सोच की बैसाखी के मुंतज़िर है। टीआरपी पद्धति का प्रयोग सन 1980 के दशक में सांता बारबरा तथा बोल्ड एंड ब्यूटीफुल जैसे कार्यक्रमों की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए हुआ था तथा इस लोकप्रियता मापक मशीन को प्रयोग के तौर पर कुछ ख़ास घरों में लगाया हुआ था जहां पर टीवी उपलब्ध था। कुछ विशेष शहरों में किसी ख़ास टीवी कार्यक्रम की लोकप्रियता के आकलन का ये सहज रुझान मूल-मंत्र के ध्वजवाहक के रुप में इस्तेमाल हुआ था मगर तीन दशकों के बाद भी उसी मंत्र तथा यंत्र को ऐसे अंदाज़ में पेश किया जा रहा है मानों जैसे कि भारत की जनता को बेवकूफ बनाने के लिए इससे बेहतर साधन उपलब्ध ही नहीं हो। READ MORE...

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