चुनाव एक पर्व है। हमारे देश में तो वैसे पर्व त्योहारों की भरमार है,लेकिन जो महत्वपूर्ण पर्व उंगलियों पर गिने जा सकते हैं, उसमें चुनाव-पर्व का स्वागत खूब तैयारी के साथ होता है।
चुनाव नेता-आधारित पर्व है, लेकिन इसमें नेताओं के साथ भ्रष्टाचारी, बाहुबली, बुद्दिजीवी, खेत-खलिहान में काम करने वाले किसान सभी जुड़ते जाते हैं। यानी यह चुनाव का महापर्व आम आदमी का महापर्व बन जाता है। इसमें सबसे ज्यादा पत्रकार जुड़ते हैं, क्योंकि राजनीति और पत्रकारिता का सम्बंध चोली-दामन का सम्बंध होता है। जब चुनाव का पर्व प्रारम्भ होता है और उत्सव चलता रहता है, तो पत्रकार उसमें इतने व्यस्त हो जाते हैं और उत्सवी चकाचौंध के अंग बन जाते हैं कि साहित्य की झिलमिलाहट उन्हैं दिखाई ही नहीं पड़ती । आगे मीडिया ख़बर.कॉम पर।
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