तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों से गुज़रते हुए हम यह शिद्दत से महसूस करते हैं कि लेखक अपने वजूद का टेक्स्ट होता है। तेजेन्द्र के पात्र ज़िन्दगी की मुश्किलों से गुज़रते हैं और अपने लिये नया रास्ता तलाशते हैं। वह नया रास्ता जहां उम्मीद है। तेजेन्द्र की कहानियों के ज़रिये हिन्दी के मुख्यधारा के साहित्य को प्रवासी साहित्य से साझेपन का रिश्ता विकसित करना चाहिये। हम उनकी जटिलताएं, उनके नज़रिये और उनके माहौल के हिसाब से समझें।” मूर्धन्य उपन्यासकार एवं कथाकार कृष्णा सोबती ने आज अपने ये विचार कथाकार तेजेन्द्र शर्मा के लेखन और जीवन पर केन्द्रित पुस्तक ‘तेजेन्द्र शर्माः वक़्त के आइने में’ के राजेन्द्र भवन सभागार में आयोजित लोकार्पण के अवसर पर प्रकट किए।
पुरी रिपोर्ट मीडिया ख़बर पर । लिंक : http://mediakhabar.com/topicdetails.aspx?mid=29&tid=878
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