कभी महात्मा गांधी ने कहा था कि प्रकृति हमारी जरुरतों को तो पूरा कर सकती है, लेकिन हमारे लालच को नहीं। जिस तरह बिना सोचे -समझे हम प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहे हैं , वह सिर्फ हमारी लोलूप मानसिकता का परिणाम है, न कि हमारी जरुरतों का। इंसान की इस क्षुद्र मानसिकता के बारे में किसी ने खूब लिखा है-
पेड़-पौधेकट गयेजंगलों के निशांमिट गयेनदियों का पानीसड़ गयाजीवन का चेहराबिगड़ गयाधुआं और शोरइस कदर बढ़ गयाप्राण सबका घुट गयाप्रकृति का जर्रा-जर्रारोता रहा, बिलखता रहायूं ही पल-पलमरता रहाइस तरहसब कुछ होता रहालेकिनदेश बचा रहाआजादी कायम रहीआदमी मरा नहीं। ....
पूरालेख मीडिया ख़बर .कॉम पर। लिंक : http://mediakhabar.com/topicdetails.aspx?mid=115&tid=822
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