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Thursday, February 19, 2009

पत्रकारिता का सच : शहर के समय पर साहित्य के हस्ताक्षर( भाग-2)


मैं पटना जाने के लिए तैयार हो गया। बाबूजी की बीमारी, सबसे छोटी बहन का विवाह और पत्नी मीरा का अकेली रहना-ये सारी समस्याएं मेरे पैरों में जंजीर बन गयी थीं। लेकिन मैंने वह जंजीर तोड़ी और ठान लिया कि पटना जाना है।

मैंने पटना जाने का इस्पाती इरादा मन में ठान लिया। पारिवारीक समस्याओं पर विजय प्राप्त करने का उपाय सोचने लगा,क्योंकि मैं इस निष्कर्ष पर पहुंच चुका था कि जबतक सासाराम नहीं छोडूंगा तबतक मेरे जीवन-यापन और परिवार के भरण-पोषण का रास्ता नहीं खुलेगा। लेकिन साथ-साथ सासाराम का भी मोह मेरे मन में था। सासाराम में ही मेरे साहित्यिक और पत्रकारिता के संस्कार का पड़ा था, जो बाद में पटना में पल्लवित-संवर्धित हुआ। पुरी आत्मकथा मीडिया ख़बर.कॉम पर। http://mediakhabar.com/topicdetails.aspx?mid=35&tid=731

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