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Sunday, May 31, 2009
कप्तानी के दबाव में धोनी ने बैटिंग की धार खो दी : अजहरूद्दीन
नई दिल्ली : भारतीय क्रिकेट टीम का कप्तान बनने के बाद महेंद्र सिंह धोनी ने बैटिंग की वो धार खो दी है जिसके लिए वो जाने जाते रहे हैं। आगे पढने के लिए यहाँ क्लिक करें। क्लिक करें।
Saturday, May 30, 2009
बाजार के तर्क के आगे सबकुछ नाकाम हो जाता है
Wednesday, May 13, 2009
मीडिया और मां की ममता का बाजारीकरण
मीडिया ने बजारीकरण की मांग पर ‘मदर्स डे’ को प्रचारित किया और बाजार में उछाला,जिससे बाजार की चकाचौंध में उत्पादक अपने सामान को बेंच सकें। आगे मीडिया ख़बर पर।
लिंक : http://mediakhabar.com/topicdetails.aspx?mid=116&tid=999
Tuesday, May 12, 2009
जिंदगी की कतरनों का संबेदनात्मक चित्रण
डा। जगदीश नारायण चौबे पटना साइंस कालेज के हिन्दी-विभाग में थे, डा. केदारनाथ कलाधर बी.एन.कालेज में, गंगेश गुंजन आकाशवाणी की सर्विस से अवकाश प्राप्त करने के पश्चात् कुछ वर्षों तक कथक-केन्द्र के निदेशक या अध्यक्ष या ऐसे ही किसी महत्वपूर्ण पद पर थे। ये सभी लिखने-पढ़ने वाले लोग भी थे। आगे मीडिया ख़बर पर।
लिंक : http://mediakhabar.com/topicdetails.aspx?mid=35&tid=992
मध्यप्रदेश के जंगलों में रोज लग रही है आग
पर हमारी सरकार तो नाम की लोकतांत्रिक और लोक कल्याणकारी है। इसे तो अपने स्वार्थों की रोटी सेंकने से ही फुरसत नहीं है। अगर एक लोकतांत्रिक सरकार जनता को जीवन की बुनियादी जरुरतों को मुहैया करवाने में असमर्थ है तो ऐसे में एक तानाशाह सरकार और लोकतांत्रिक सरकार के बीच क्या अंतर है ? आगे मीडिया ख़बर.कॉम पर।
लिंक : http://mediakhabar.com/topicdetails.aspx?mid=115&tid=998
Tuesday, May 5, 2009
समाचार-पत्रों में बढ़ता भाषायी खेल
भूमंडलीकरण ने समाज में प्रत्येक चीज़ को बाज़ार में प्रवेश करा दिया है जहाँ सभी प्रतिस्पर्धा की होड़ में लगे हुए हैं। समाचार-पत्र भी बाज़ार में प्रवेश कर चुके हैं। यही कारण है कि सभी समाचार-पत्र, बाज़ार में अपना ऊँचा स्थान बनाने के लिए भाषायी खेल का सहारा ले रहे हैं। तथा समाचार-पत्रों की भाषा के वास्तविक स्वरूप को अनदेखा कर एक नई भाषा गढ़ रहे हैं जो सही मायने में समाचार-पत्रों की भाषा न होकर बाज़ार की चकाचौंध भरी जिंदगी में जीने का एक मंत्र है। आगे मीडिया ख़बर.कॉम पर।
लिंक : http://mediakhabar.com/topicdetails.aspx?mid=89&tid=974
Monday, May 4, 2009
'सेक्सुअल टेरेरिस्ट' हैं खुशवंत सिंह !
ऐसा लग रहा है कि 93 साल की इस कंपकंपाती उम्र में खुशवंत सिंह साहब ने कसम खा ली है कि जनाब वो सभी पाप अभी ही कर लेंगे जो उन्होने ताउम्र नहीं किए या नहीं कर पाए। तभी तो अपनी लंपटता की नई-नई मिसालें देते अघा नहीं रहे हैं वो। वो खुद को ............आगे मीडिया ख़बर.कॉम पर।
लिंक > http://mediakhabar.com/topicdetails.aspx?mid=34&tid=972
Sunday, May 3, 2009
कोल्हू के बैल वाला पत्रकार बनना नहीं चाहा
मैंने पटना से प्रकाशित हिन्दी दैनिक ‘आज’ में ज्वाइन कर लिया। तारीख थी-19 अप्रैल 1986 पत्रकार तो मैं पहले भी था, लेकिन कस्बे का पत्रकार। राजधानी के हिन्दी दैनिक के संपादकीय विभाग में काम करने का पहला अवसर था।
आंखो में सपने तैरने लगे। जवानी के दिनों में कभी कालेज में प्राध्यापक बनने का सपना देखा था, लेकिन वह सपना तो चूर-चूर हो गया। मैं एम।ए के परीक्षाफल आने के चार दिनों के बाद ही जवाहरलाल नेहरू कालेज के हिन्दी विभाग में नियुक्त हो गया था। तत्कालीन अनुमंडल पदाधिकारी एस.एस. मेहदी क्लास में मेरे पढ़ाने के ढंग से काफी प्रभावित हुए थे और बाद में अपने आफिस में बुला कर नियुक्ति पत्र देते हुए मुझे बधाई दी थी। वे उस कालेज के पदेन अध्यक्ष थे और डिहरी-ऑन-सोन के स्थानीय राजनीतिज्ञ राजाराम गुप्ता सचिव थे।राजाराम गुप्ता मेरे पिताजी के मित्र थे और मेरा समर्थन किया था।बाद में कालेज की प्राध्यापक की नौकरी छोड़नी पड़ी। आगे मीडिया ख़बर.कॉम पर।
लिंक : http://mediakhabar.com/topicdetails.aspx?mid=35&tid=967
Saturday, May 2, 2009
पाकिस्तान में एक साल के दौरान 15 पत्रकार मारे गए
पाकिस्तान में एक साल के दौरान 15 पत्रकार मारे गए - > रिपोर्ट > मीडिया खबर।कॉम
शनिवार, 2 मई, 2009पाकिस्तान, पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक जगह बनता जा रहा है। पाकिस्तान में मई 2008 से मई 2009 के बीच 15 पत्रकार मारे गए हैं. पाकिस्तान के मीडिया इतिहास में यह सबसे खूनी साल है. इन 15 पत्रकारों में सिर्फ एक ने वेतन न मिलने के कारण आत्महत्या की. बाकी पत्रकारों की मौत आतंकवादियों या सेना के अभियान या किसी तरह के आंतकवादी गतिविधियों के दौरान हुई .
आगे मीडिया ख़बर.कॉम पर।
लिंक : http://mediakhabar.com/topicdetails.aspx?mid=42&tid=964
आईपीएल की खबरें दिखाकर आजतक ने बटोरी सबसे ज्यादा टीआरपी
लिंक : http://mediakhabar.com/topicdetails.aspx?mid=60&tid=963
Friday, May 1, 2009
मीडिया में देहराग
औरत की देह इस समय मीडिया का सबसे लोकप्रिय विमर्श है । सेक्स और मीडिया के समन्वय से जो अर्थशास्त्र बनता है उसने सारे मूल्यों को शीर्षासन करवा दिया है । फिल्मों, इंटरनेट, मोबाइल, टीवी चेनलों से आगे अब वह मुद्रित माध्यमों पर पसरा पड़ा है। प्रिंट मीडिया जो पहले अपने दैहिक विमर्शों के लिए ‘प्लेबाय’ या ‘डेबोनियर’ तक सीमित था अब दैनिक अखबारों से लेकर हर पत्र-पत्रिका में अपनी जगह बना चुका है। आगे मीडिया ख़बर.कॉम पर।
लिंक : http://mediakhabar.com/topicdetails.aspx?mid=33&tid=955
टीआरपी की रेस में स्टार प्लस फिर आगे
ताजा आंकडों के अनुसार .... आगे मीडिया ख़बर.कॉम पर।
लिंक : http://mediakhabar.com/topicdetails.aspx?mid=60&tid=960