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Sunday, May 31, 2009

कप्तानी के दबाव में धोनी ने बैटिंग की धार खो दी : अजहरूद्दीन

न्यूज़ 24 के कार्यक्रम आमने - सामने में अजहरूद्दीन
नई दिल्ली : भारतीय क्रिकेट टीम का कप्तान बनने के बाद महेंद्र सिंह धोनी ने बैटिंग की वो धार खो दी है जिसके लिए वो जाने जाते रहे हैं। आगे पढने के लिए यहाँ क्लिक करें। क्लिक करें।

Saturday, May 30, 2009

बाजार के तर्क के आगे सबकुछ नाकाम हो जाता है

- राहुल देव, एडिटर - इन - चीफ, सीएनईबी
बाजार के तर्क के आगे सबकुछ नाकाम हो जाता है। लोग यदि पढेंगे ही नहीं, देखेंगे ही नहीं कैसे जीएगा अच्छा कंटेंट. अच्छे कंटेंट को बढ़ाने के लिए समाज के जो जिम्मेदार लोग हैं उन्हें कीमत चुकानी पड़ेगी. मुफ्त में अच्छा कंटेंट नहीं मिल सकता. आपको मुफ्त में मीडिया चाहिए तो सस्ता ही मिलेगा. इस समाज को सस्ते मीडिया की आदत पड़ गयी है. दुनिया में भारत से सस्ता मीडिया कहीं नहीं मिलता है. विदेशों में 50 - 50 रुपये तक के अखबार मिलते हैं. यहाँ तक कि पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश में अखबार कई-कई गुना यहाँ से महंगा मिलता है. ऐसा होने की वजह से ही भारतीय मीडिया विज्ञापन देने वालों के ऊपर इतना निर्भर हो गया है कि हमारे पास कुछ अच्छा करने की कोई गुंजाइश ही नहीं बचती है। आगे पढने के यहाँ क्लिक करें । क्लिक करें ।

Wednesday, May 13, 2009

मीडिया और मां की ममता का बाजारीकरण

मात्र ‘मां’ शब्द से ही ममता,त्याग और करूणा की एक शुभ्र-धवल प्रतिमूर्ति आंखों में छा जाती है। यह शब्द आदिकाल से लेकर वर्तमान युग तक अपनी संपूर्ण गरिमा और उज्ज्वलता के साथ मौजूद है। अभी 10 मई को ‘मदर्स डे’ मनाया गया। अपने देश में ‘मदर्स डे’ मनाना, उसे त्योहारी और उपहारी रूप देना सचमुच शर्मनाक है, क्योंकि मां का कोई ‘डे’ नहीं होता। वह हर पल,हर दिन मां ही रहती है और प्रेम,स्नेह,करूणा और ममता का ज्योतिकलश छलकाती रहती है।
मीडिया ने बजारीकरण की मांग पर ‘मदर्स डे’ को प्रचारित किया और बाजार में उछाला,जिससे बाजार की चकाचौंध में उत्पादक अपने सामान को बेंच सकें। आगे मीडिया ख़बर पर।
लिंक : http://mediakhabar.com/topicdetails.aspx?mid=116&tid=999

Tuesday, May 12, 2009

जिंदगी की कतरनों का संबेदनात्मक चित्रण

मेरे अंदर एक इच्छा थी कि खूब पढ़ू और खूब लिखूं ताकि संपूर्ण बिहार में मेरा नाम रौशन हो। यह ख्वाहिश इसलिए थी कि कभी मैं प्राध्यापक था और लिखता था। साथ-साथ पत्रकार भी था। लिखने की आदत छात्र-जीवन से ही थी। मैं जब बी.एन. कालेज का छात्र था, तो वहां के कालेज की प्रतिवर्ष निकलने वाली पत्रिका ‘भारती’ का संपादक भी था। इसके पूर्व ‘भारती’ के संपादक के रूप में डा. जगदीश नारायण चौबे,डा. केदारनाथ कलाधर,डा. गंगेश गुंजन,अवधेश कुमार सरस आदि थे।

डा। जगदीश नारायण चौबे पटना साइंस कालेज के हिन्दी-विभाग में थे, डा. केदारनाथ कलाधर बी.एन.कालेज में, गंगेश गुंजन आकाशवाणी की सर्विस से अवकाश प्राप्त करने के पश्चात् कुछ वर्षों तक कथक-केन्द्र के निदेशक या अध्यक्ष या ऐसे ही किसी महत्वपूर्ण पद पर थे। ये सभी लिखने-पढ़ने वाले लोग भी थे। आगे मीडिया ख़बर पर।
लिंक : http://mediakhabar.com/topicdetails.aspx?mid=35&tid=992

मध्यप्रदेश के जंगलों में रोज लग रही है आग

लगता है सन् 2009 का साल भविष्य में आने वाले संकट की ओर संकेत कर रहा है। एक तरफ तो गर्मी का पारा लगातार बढ़ रहा है तो दूसरी ओर जल संकट का दायरा धीरे-धीरे बढ़ते हुए पूरे देश को अपने गिरफ्त में ले रहा है। हालत इतने गंभीर हैं कि सर्वोच्च न्यायलय को जल संकट के मुद्वे पर केन्द्र सरकार के खिलाफ़ बहुत ही तल्ख टिप्पणी करनी पड़ी, जोकि किसी भी आत्मस्वाभिमानी सरकार के लिए शर्म की बात हो सकती है।
पर हमारी सरकार तो नाम की लोकतांत्रिक और लोक कल्याणकारी है। इसे तो अपने स्वार्थों की रोटी सेंकने से ही फुरसत नहीं है। अगर एक लोकतांत्रिक सरकार जनता को जीवन की बुनियादी जरुरतों को मुहैया करवाने में असमर्थ है तो ऐसे में एक तानाशाह सरकार और लोकतांत्रिक सरकार के बीच क्या अंतर है ? आगे मीडिया ख़बर.कॉम पर।
लिंक : http://mediakhabar.com/topicdetails.aspx?mid=115&tid=998

Tuesday, May 5, 2009

समाचार-पत्रों में बढ़ता भाषायी खेल

वर्तमान युग सूचना क्रान्ति का युग है। इस युग में दुनिया सिमटकर छोटी हो गई है। पूंजीवाद, भूमंडलीकरण और बाजारवाद आधुनिक युग के कुछ ऐसे पहलू हैं, जिन्होंने समाज के प्रत्येक पक्ष को प्रभावित किया है। यदि यह कहा जाए कि समाचार-पत्र इनके प्रभाव से अछूते रह गए हैं तो यह अनुचित होगा।
भूमंडलीकरण ने समाज में प्रत्येक चीज़ को बाज़ार में प्रवेश करा दिया है जहाँ सभी प्रतिस्पर्धा की होड़ में लगे हुए हैं। समाचार-पत्र भी बाज़ार में प्रवेश कर चुके हैं। यही कारण है कि सभी समाचार-पत्र, बाज़ार में अपना ऊँचा स्थान बनाने के लिए भाषायी खेल का सहारा ले रहे हैं। तथा समाचार-पत्रों की भाषा के वास्तविक स्वरूप को अनदेखा कर एक नई भाषा गढ़ रहे हैं जो सही मायने में समाचार-पत्रों की भाषा न होकर बाज़ार की चकाचौंध भरी जिंदगी में जीने का एक मंत्र है। आगे मीडिया ख़बर.कॉम पर।
लिंक : http://mediakhabar.com/topicdetails.aspx?mid=89&tid=974

Monday, May 4, 2009

'सेक्सुअल टेरेरिस्ट' हैं खुशवंत सिंह !

मशहूर लेखक खुशवंत सिंह सुधर नहीं सकते। अब मुझे इसका यकीन हो चला है। कहते हैं उम्र के आखिरी पड़ाव में इंसान भगवान को याद करता है और पूजा-पाठ तथा ईश-भक्ति कर अपने पापों के लिए क्षमा मांगता है ताकि उसका परलोक सुधर सके। लेकिन यहां तो उल्टी ही गंगा बह रही है। क्षमा मांगने की तो छोड़िए जनाब, पाप पर पाप किए जाने की लत लगातार बदतर होती जा रही है। दिन-ब-दिन वयोवृद्ध लेखक की ठरक नई-नई हदें बनाती और लांघती जा रही है।

ऐसा लग रहा है कि 93 साल की इस कंपकंपाती उम्र में खुशवंत सिंह साहब ने कसम खा ली है कि जनाब वो सभी पाप अभी ही कर लेंगे जो उन्होने ताउम्र नहीं किए या नहीं कर पाए। तभी तो अपनी लंपटता की नई-नई मिसालें देते अघा नहीं रहे हैं वो। वो खुद को ............आगे मीडिया ख़बर.कॉम पर।
लिंक > http://mediakhabar.com/topicdetails.aspx?mid=34&tid=972

Sunday, May 3, 2009

कोल्हू के बैल वाला पत्रकार बनना नहीं चाहा

मैंने पटना से प्रकाशित हिन्दी दैनिक ‘आज’ में ज्वाइन कर लिया। तारीख थी-19 अप्रैल 1986 पत्रकार तो मैं पहले भी था, लेकिन कस्बे का पत्रकार। राजधानी के हिन्दी दैनिक के संपादकीय विभाग में काम करने का पहला अवसर था।
आंखो में सपने तैरने लगे। जवानी के दिनों में कभी कालेज में प्राध्यापक बनने का सपना देखा था, लेकिन वह सपना तो चूर-चूर हो गया। मैं एम।ए के परीक्षाफल आने के चार दिनों के बाद ही जवाहरलाल नेहरू कालेज के हिन्दी विभाग में नियुक्त हो गया था। तत्कालीन अनुमंडल पदाधिकारी एस.एस. मेहदी क्लास में मेरे पढ़ाने के ढंग से काफी प्रभावित हुए थे और बाद में अपने आफिस में बुला कर नियुक्ति पत्र देते हुए मुझे बधाई दी थी। वे उस कालेज के पदेन अध्यक्ष थे और डिहरी-ऑन-सोन के स्थानीय राजनीतिज्ञ राजाराम गुप्ता सचिव थे।राजाराम गुप्ता मेरे पिताजी के मित्र थे और मेरा समर्थन किया था।बाद में कालेज की प्राध्यापक की नौकरी छोड़नी पड़ी। आगे मीडिया ख़बर.कॉम पर।

लिंक : http://mediakhabar.com/topicdetails.aspx?mid=35&tid=967

Saturday, May 2, 2009

पाकिस्तान में एक साल के दौरान 15 पत्रकार मारे गए

पाकिस्तान में एक साल के दौरान 15 पत्रकार मारे गए - > रिपोर्ट > मीडिया खबर।कॉम

शनिवार, 2 मई, 2009पाकिस्तान, पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक जगह बनता जा रहा है। पाकिस्तान में मई 2008 से मई 2009 के बीच 15 पत्रकार मारे गए हैं. पाकिस्तान के मीडिया इतिहास में यह सबसे खूनी साल है. इन 15 पत्रकारों में सिर्फ एक ने वेतन न मिलने के कारण आत्महत्या की. बाकी पत्रकारों की मौत आतंकवादियों या सेना के अभियान या किसी तरह के आंतकवादी गतिविधियों के दौरान हुई .

आगे मीडिया ख़बर.कॉम पर।

लिंक : http://mediakhabar.com/topicdetails.aspx?mid=42&tid=964

आईपीएल की खबरें दिखाकर आजतक ने बटोरी सबसे ज्यादा टीआरपी

निराशाजनक शुरुआत के बाद आईपीएल का नशा अब दर्शकों के सर चढ़ कर बोलने लगा है। टैम के ताजे आंकड़े भी इस बात की गवाही दे रहे है. ताजा आंकडों के मुताबिक समाचार चैनलों पर दिखाए जाने वाले चोटी के पांच कार्यक्रमों में तीन कार्यक्रम आईपीएल पर केंद्रित है. खास बात यह है कि यह तीनों ही कार्यक्रम आजतक के हैं. आगे मीडिया ख़बर .कॉम पर।
लिंक : http://mediakhabar.com/topicdetails.aspx?mid=60&tid=963

Friday, May 1, 2009

मीडिया में देहराग



औरत की देह इस समय मीडिया का सबसे लोकप्रिय विमर्श है । सेक्स और मीडिया के समन्वय से जो अर्थशास्त्र बनता है उसने सारे मूल्यों को शीर्षासन करवा दिया है । फिल्मों, इंटरनेट, मोबाइल, टीवी चेनलों से आगे अब वह मुद्रित माध्यमों पर पसरा पड़ा है। प्रिंट मीडिया जो पहले अपने दैहिक विमर्शों के लिए ‘प्लेबाय’ या ‘डेबोनियर’ तक सीमित था अब दैनिक अखबारों से लेकर हर पत्र-पत्रिका में अपनी जगह बना चुका है। आगे मीडिया ख़बर.कॉम पर।


लिंक : http://mediakhabar.com/topicdetails.aspx?mid=33&tid=955

टीआरपी की रेस में स्टार प्लस फिर आगे

गुरुवार, 30 अप्रैल, 2009हिन्दी मनोरंजन चैनल स्टार प्लस और कलर्स के बीच कांटे की जंग जारी है। इस हफ्ते जारी टीआरपी के आकंडों के मुताबिक स्टार प्लस एक बार फिर से नंबर एक मनोरंजन चैनल बन गया है। गौरतलब है कि स्टार प्लस को पछाड़कर पिछले दो हफ्ते से कलर्स नंबर एक पर कायम था।
ताजा आंकडों के अनुसार .... आगे मीडिया ख़बर.कॉम पर।
लिंक : http://mediakhabar.com/topicdetails.aspx?mid=60&tid=960